Followers

Friday, October 1, 2010

नारी की पुकार

हे कृष्ण धरा पर आओ
अबला की लाज बचाओ
एक दुख्रियारी गम की मारी
बिपदाओं से अब ये हारी
लेकर मन में कुछ उम्मीदें
आई है वो द्वार तिहारी
जब पांडव को बिपदा घेरा
जब द्रोपदी का था उठा बसेरा
पांचाली एक महल की रानी
जब उतर रहा था सर का पानी
जब केश पकड़ कर सभा में आई
तब तुमने आकर लाज बचाई
इस कलयुग नगरी के दुशासन
करते है अबला पर शासन
(नश्तर सी चुभती इस पीड़ा की राहत के लिए)
कुछ खुले केश के सकतों में
कुछ खो गई चिता के लपटों में

“बेबसी” [This poem was crowned by editors]

बेबसी बन गई ज़िन्दगी ये मेरी
आप भी हो के शामिल मज़ा लीजिये
खुद की नज़रों में इतना गिरे आज हम
आप भी आके कुछ तो गिरा दीजिये
मैं वो शमां नहीं जो जलूं रात-दिन
प्रीत परवानों से फिर करूँ किस तरह
मैं वो शबनम नहीं जो बिखरती फिरूं
ज़िन्दगी से मैं फ़रियाद क्यूँ ना करूँ
मैं भटकती रही अजनबी की तरह
आरजू को उठा के कोई ले गया
कोई छलता रहा हमको हर मोड़ पे
आप भी आके कुछ तो दगा दीजिये
लेके आगोश मैं कड़वे अहसास को
चल पड़ी हूँ मैं अब तो नई राह पर
बन गई हूँ दुल्हन अब तो मैं मौत की
आप ही आके हमको विदा कीजिये
स्वयं प्रभा

“शालू की बिदाई “

(इस कविता को मैंने अपनी प्यारी बेटी शालू के के लिए लिखा है, जिसका विवाह २७ जून २०१० को मुंबई के एक परिवार में सम्पन्न हुआ.जब मैं छोटी थी तो लड़की के जन्म पर कोई खेद प्रकट करता हो मुझे बहुत ही बुरा लगता था, परन्तु अपनी बेटी के बिदाई के बाद इस दर्द को हमने महसूस किया और अब बस इतना ही कहूँगी कि,
“अब जो किये हो दाता ऐसा ना कीजो, अगले जनम मोहें बिटिया ना कीजो”)

उसकी उदास आँखें, कहती थी कुछ कहानी
खामोश लव पर थी कुछ फ़रियाद कि निशानी
वो ज़िन्दगी जिसे बस, नाजों से हमने पाला
लहू के कतरे देकर, हमने जिसे संभाला
जीवन डगर पे फिर क्यूँ ,
निकली वो आज तन्हां
वो मासूमियत का साया, लेकर चली सफ़र में
कैसी घड़ी ये आई, सोचा ना था कभी भी
मेरे जिगर का टुकड़ा हो जाएगी पराई
नाजुक कली है वो तो, मेरे जिगर चमन कि
टुकड़े हुए क्यूँ मन के, क्यूँ आज वो कुम्भलाई
लाडो तुम्हारी दुनियां, अब तो पति का घर है
वो प्यार ही तुम्हारा बस स्वर्ग सा सुन्दर है
धड़कन पे हर तुम्हारे, अधिकार है किसी का
सांसों में भी तुम्हारे, खुशबु हो बस उसी का
(स्वयं प्रभा)

Tuesday, March 3, 2009

*मन*

नफरत से भरी इस नगरी में
ढूंढे तू किसे सहारा
किसको तू अपना समझे.
कौन है तेरा हमदम
कौन है तेरा हमराही
नहीं तेरा कोई किनारा
मन की आँखों से से सब देख
मिल जायेगा तुझे किनारा
तेरा मन ही तेरा सहारा
जब मन हरा तो तू भी हारा
जीवन हारा, धड़कन हारा
जब मन जीता तो तू जीता
सांसों का हर धड़कन जीता
अरमानों का सरगम जीता
सुख - दुःख जीवन के दो पहलु
कभी आते हैं, कभी जाते हैं
पर मन की ज्योति जलाते हैं जो
पतझड़ में फूल खिलाते हैं वो
मझधार भँवर में फंस कर भी
साहिल पे पहुँच ही जाते हैं वो

Monday, June 30, 2008

गर पहले बता देते

एक छोटा सा आशियाना
करना ही था जब विराना
हम तिनके ना चुने होते
गर पहले बता देते
हम अपने जिगर दिल को
इतनी ना सज़ा देते
तुम ऐसे बदल जाओगे
गर पहले बता देते
दुनिया की निगाहों में
रुसवा भी किया हमको
हर मोड़ हर कदम पे
जिल्लत ही दिया हमको
गर जानते पहले हम
सपने ना बुने होते
तुम ऐसे बदल जाओगे
ये पहले बता देते
हर रस्म जुदाई का
स्वीकार किया हमने
हर शिकवा शिकायत का
भी इकरार किया हमने
मझधार में ये कश्ती
इस तरह डुबाओगे
हम भी तो संभल जाते
गर पहले बता देते

Sunday, June 29, 2008

फैशन- परस्त

फैशन- परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
हर सजा वो फैशन में भुगतने लगे है
पुरूष बने नारी, नारी ने त्यागी साड़ी
नवयुग निर्माण का ये जोर देखिये, फैशन- परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
लंबे केश भा गए पुरूष को
बॉब कट में आ गई नारी
चेहरे की बर्जिश करके बूढे भी जवां बनते
रंगते है उजले बालों को रसायन के मसालों से
पलभर ना जुदा करते चेहरे को आईने से ये
फैशन मैं इन बेचारों को ओर देखिये, फैशन परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
बच्चे, जवां, बूढे भी
खड़े एकता की क्यू में
चांस मिलने के इन्तजार में
खड़े ब्यूटी बाजार में
ब्यूटी पार्लर की लम्बी कतार देखिये, फैशन परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
हाय डैड बनाया पिता को
माँ को बनाया मम्मी से मामा
बनेगे क्या मामा अभी तक न जाना
पहुचने लगे जब फैशन की सतह में वो
डार्लिंग की खिचडी बनी हर जगह में
कलयुग के इन बीमारों की ओर देखिये, फैशन परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये

Wednesday, June 25, 2008

वहीं आशियां मै मिटाने चली हूं

बनाया जिसे था कभी एक गुलशन
वही आशियां मै मिटाने चली हूं
छिपाया जिसे था कभी दुसरो से
वही आज सबको बताने चली हूं
मेरे बागवां से जो एक फूल टूटा
कहने लगे सब ये गुलशन है झुठा
मेरी बेबसी ने सितम इतनें ढाये
वही कर्ज अब मैं चुकाने चली हूं
तेरी जफाई के इस आइने में
मेरी वफा का मोल नही है
खेला है हमको बनाकर खिलौना
हमें तोडना कोइ खेल नही है
हारी जो हमने इस दिल कि बाजी
उसी दिल पे मरहम लगाने चली हूं
हम तो चले थे सदा साथ तेरे
दामन में भर के जहां की उम्मीदें
हम खो गये थे पहलु में तेरे
पलकों में लेकर के सपने घनेंरे
मझधार में जो डुबाया है हमको
मैं खुद को भंवर से छु्ड़ाने चली हूं
बनाया जिसे था कभी एक गुलशन
वही आशियां मै मिटाने चली हूं