(इस कविता को मैंने अपनी प्यारी बेटी शालू के के लिए लिखा है, जिसका विवाह २७ जून २०१० को मुंबई के एक परिवार में सम्पन्न हुआ.जब मैं छोटी थी तो लड़की के जन्म पर कोई खेद प्रकट करता हो मुझे बहुत ही बुरा लगता था, परन्तु अपनी बेटी के बिदाई के बाद इस दर्द को हमने महसूस किया और अब बस इतना ही कहूँगी कि,
“अब जो किये हो दाता ऐसा ना कीजो, अगले जनम मोहें बिटिया ना कीजो”)
उसकी उदास आँखें, कहती थी कुछ कहानी
खामोश लव पर थी कुछ फ़रियाद कि निशानी
वो ज़िन्दगी जिसे बस, नाजों से हमने पाला
लहू के कतरे देकर, हमने जिसे संभाला
जीवन डगर पे फिर क्यूँ ,
निकली वो आज तन्हां
वो मासूमियत का साया, लेकर चली सफ़र में
कैसी घड़ी ये आई, सोचा ना था कभी भी
मेरे जिगर का टुकड़ा हो जाएगी पराई
नाजुक कली है वो तो, मेरे जिगर चमन कि
टुकड़े हुए क्यूँ मन के, क्यूँ आज वो कुम्भलाई
लाडो तुम्हारी दुनियां, अब तो पति का घर है
वो प्यार ही तुम्हारा बस स्वर्ग सा सुन्दर है
धड़कन पे हर तुम्हारे, अधिकार है किसी का
सांसों में भी तुम्हारे, खुशबु हो बस उसी का
(स्वयं प्रभा)
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