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Friday, October 1, 2010

नारी की पुकार

हे कृष्ण धरा पर आओ
अबला की लाज बचाओ
एक दुख्रियारी गम की मारी
बिपदाओं से अब ये हारी
लेकर मन में कुछ उम्मीदें
आई है वो द्वार तिहारी
जब पांडव को बिपदा घेरा
जब द्रोपदी का था उठा बसेरा
पांचाली एक महल की रानी
जब उतर रहा था सर का पानी
जब केश पकड़ कर सभा में आई
तब तुमने आकर लाज बचाई
इस कलयुग नगरी के दुशासन
करते है अबला पर शासन
(नश्तर सी चुभती इस पीड़ा की राहत के लिए)
कुछ खुले केश के सकतों में
कुछ खो गई चिता के लपटों में

4 comments:

खबरों की दुनियाँ said...

अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"pro

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Patali-The-Village said...

सुन्दर प्रस्तुति.....

Dr.Dayaram Aalok said...

आपका लेखन सराहनीय है। आभार!