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Monday, June 30, 2008

गर पहले बता देते

एक छोटा सा आशियाना
करना ही था जब विराना
हम तिनके ना चुने होते
गर पहले बता देते
हम अपने जिगर दिल को
इतनी ना सज़ा देते
तुम ऐसे बदल जाओगे
गर पहले बता देते
दुनिया की निगाहों में
रुसवा भी किया हमको
हर मोड़ हर कदम पे
जिल्लत ही दिया हमको
गर जानते पहले हम
सपने ना बुने होते
तुम ऐसे बदल जाओगे
ये पहले बता देते
हर रस्म जुदाई का
स्वीकार किया हमने
हर शिकवा शिकायत का
भी इकरार किया हमने
मझधार में ये कश्ती
इस तरह डुबाओगे
हम भी तो संभल जाते
गर पहले बता देते

Sunday, June 29, 2008

फैशन- परस्त

फैशन- परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
हर सजा वो फैशन में भुगतने लगे है
पुरूष बने नारी, नारी ने त्यागी साड़ी
नवयुग निर्माण का ये जोर देखिये, फैशन- परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
लंबे केश भा गए पुरूष को
बॉब कट में आ गई नारी
चेहरे की बर्जिश करके बूढे भी जवां बनते
रंगते है उजले बालों को रसायन के मसालों से
पलभर ना जुदा करते चेहरे को आईने से ये
फैशन मैं इन बेचारों को ओर देखिये, फैशन परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
बच्चे, जवां, बूढे भी
खड़े एकता की क्यू में
चांस मिलने के इन्तजार में
खड़े ब्यूटी बाजार में
ब्यूटी पार्लर की लम्बी कतार देखिये, फैशन परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये
हाय डैड बनाया पिता को
माँ को बनाया मम्मी से मामा
बनेगे क्या मामा अभी तक न जाना
पहुचने लगे जब फैशन की सतह में वो
डार्लिंग की खिचडी बनी हर जगह में
कलयुग के इन बीमारों की ओर देखिये, फैशन परस्त प्रेमियों की होड़ देखिये

Wednesday, June 25, 2008

वहीं आशियां मै मिटाने चली हूं

बनाया जिसे था कभी एक गुलशन
वही आशियां मै मिटाने चली हूं
छिपाया जिसे था कभी दुसरो से
वही आज सबको बताने चली हूं
मेरे बागवां से जो एक फूल टूटा
कहने लगे सब ये गुलशन है झुठा
मेरी बेबसी ने सितम इतनें ढाये
वही कर्ज अब मैं चुकाने चली हूं
तेरी जफाई के इस आइने में
मेरी वफा का मोल नही है
खेला है हमको बनाकर खिलौना
हमें तोडना कोइ खेल नही है
हारी जो हमने इस दिल कि बाजी
उसी दिल पे मरहम लगाने चली हूं
हम तो चले थे सदा साथ तेरे
दामन में भर के जहां की उम्मीदें
हम खो गये थे पहलु में तेरे
पलकों में लेकर के सपने घनेंरे
मझधार में जो डुबाया है हमको
मैं खुद को भंवर से छु्ड़ाने चली हूं
बनाया जिसे था कभी एक गुलशन
वही आशियां मै मिटाने चली हूं

mrig mareechika

ye zindgi, zindgi nahi hai.
Bas ehsaas ki ek parchhai hai.
davnd machati man main
uthal-puthal ye kadiya hai
aur kuchh nahi bas ek kadwi sachchai hai.
in chir-parichit anjaan rahon main
ateet ka aaina dikhata hai ye waqt beraham.
anginat eahsaas ko samete maan main
chalne ko karen mazboor, in jaani pahchani rahon main.
in sukhe registaan main
ret chamkati jab dikhti
hum dur tak talashe manzil yahan.
aur dhudhten hai is jeevan ke,
sampurn saar ko……
is mrig marichika main…………