बेबसी बन गई ज़िन्दगी ये मेरी
आप भी हो के शामिल मज़ा लीजिये
खुद की नज़रों में इतना गिरे आज हम
आप भी आके कुछ तो गिरा दीजिये
मैं वो शमां नहीं जो जलूं रात-दिन
प्रीत परवानों से फिर करूँ किस तरह
मैं वो शबनम नहीं जो बिखरती फिरूं
ज़िन्दगी से मैं फ़रियाद क्यूँ ना करूँ
मैं भटकती रही अजनबी की तरह
आरजू को उठा के कोई ले गया
कोई छलता रहा हमको हर मोड़ पे
आप भी आके कुछ तो दगा दीजिये
लेके आगोश मैं कड़वे अहसास को
चल पड़ी हूँ मैं अब तो नई राह पर
बन गई हूँ दुल्हन अब तो मैं मौत की
आप ही आके हमको विदा कीजिये
स्वयं प्रभा
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