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Wednesday, June 25, 2008

वहीं आशियां मै मिटाने चली हूं

बनाया जिसे था कभी एक गुलशन
वही आशियां मै मिटाने चली हूं
छिपाया जिसे था कभी दुसरो से
वही आज सबको बताने चली हूं
मेरे बागवां से जो एक फूल टूटा
कहने लगे सब ये गुलशन है झुठा
मेरी बेबसी ने सितम इतनें ढाये
वही कर्ज अब मैं चुकाने चली हूं
तेरी जफाई के इस आइने में
मेरी वफा का मोल नही है
खेला है हमको बनाकर खिलौना
हमें तोडना कोइ खेल नही है
हारी जो हमने इस दिल कि बाजी
उसी दिल पे मरहम लगाने चली हूं
हम तो चले थे सदा साथ तेरे
दामन में भर के जहां की उम्मीदें
हम खो गये थे पहलु में तेरे
पलकों में लेकर के सपने घनेंरे
मझधार में जो डुबाया है हमको
मैं खुद को भंवर से छु्ड़ाने चली हूं
बनाया जिसे था कभी एक गुलशन
वही आशियां मै मिटाने चली हूं

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